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मगही मुख्यमंत्री के छाती पर चढ़कर मिथिला राज्य के गठन हेतु परिचर्चा का हुआ आयोजन !

आज दिनांक – 07 अगस्त 2022 को मिथिला स्टूडेंट यूनियन एवं मिथिलावादी पार्टी द्वारा पटना स्थित विद्यापति भवन में ‘मिथिला राज्य के औचित्य पर चर्चा-परिचर्चा’ का आयोजन मिथिलावादी नेता रजनीश प्रियदर्शी एवं प्रसून मैथिल के नेतृत्व में आयोजित हुआ। कार्यक्रम का शुरुआत दीप प्रज्वलन से हुआ , इस दीप प्रज्वलन कार्यक्रम में मिथिलावादी नेता व पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अविनाश भारद्वाज , मिथिलावादी पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीफ़ सिंह , अमरदीप गौत्तम , चेतना समिति के सचिव उमेश मिश्र , अधिवक्ता राजेश मिश्र , मंजू झा , अनुपम जी ने किया । संचालन स्वयं रजनीश प्रियदर्शी ने किया । कार्यक्रम व संगठन का परिचय गोपाल चौधरी ने सभागार में उपस्थित मैथिलो को संबोधित किया।

छलावा एवं शोषण मिथिला की नियति बन गई है

मिथिला राज्य के औचित्य पर चर्चा – परिचर्चा के दौरान अतिथि वक्ताओं ने कहा कि – ना तो पलायन का कोई ठोस निदान अब तक निकल पाया है और ना ही संवैधानिक भाषा के रूप में अब तक मैथिली को यथोचित अधिकार ही प्राप्त हो सका है। मिथिला राज्य का निर्माण हो, जिससे मिथिला का औद्योगिकीकरण और विकास संभव होगा।पौराणिक काल से ही मिथिला अपनी सभ्यता और संस्कृति के लिए चर्चित क्षेत्र रहा है। राज्य स्थापना के बाद ही इस क्षेत्र के सर्वागीण विकास की बात सोची जा सकती है।

कृषि , उद्योग-धंधा , पर्यटन , शिक्षा एवं संस्कृति के विकास से ही इस क्षेत्र की दुर्दशा तथा बेरोजगारी का अंत हो सकता है तथा लोगों को पलायन रुक सकता है और ये सभी बातें तभी सम्भव है जब इस क्षेत्र की जनता ‘पृथक मिथिला राज्य’ की स्थापना के लिए जागरूक , कटिबद्ध एवं आंदोलन आरम्भ हुआ है । शोषण तथा उपेक्षा इतनी बढ़ती गई कि सारे उद्योग – धंधे समाप्त हो गए तथा उससे सम्बंधित कृषि का विनाश होता गया । प्रतिवर्ष बाढ़ एवं अकाल के तांडव तथा राजनेताओं के खोखले आश्वासन , छलावा एवं शोषण यहाँ की नियति बन गई।

बिहार में मिथिला के साथ भेदभाव किया जाता है

अतः अगर शोषण तथा विकास को आधार मानकर राज्यो का निर्माण होता रहा है तो भी मिथिला राज्य का निर्माण परमावश्यक एवं समयानुकूल है । भौगौलिक , आर्थिक , ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से मिथिला के पास एक राज्य की सारी योग्यताएं हैं ।बिहार में हमारे साथ भेदभाव किया जाता है। यहां तक कि बिहार गीत में भी मैथि‍ली और मिथि‍ला की उपेक्षा की गई है। पूरे बिहार गीत में ना तो कवि विद्यापती है ना हीं मां जानकी। विकास के नाम पर भी मिथि‍ला की उपेक्षा की गई। आज कोई भी कारखाना, यूनिवर्सिटी खोलने की मांग होती है तो उसे मगध एरिया में धकेल दिया जाता है। आईआईटी की बात हो या सेंट्रल यूनिवर्सिटी की। मिथि‍ला हमेशा से उपेक्षित रहा है और यही वजह है जो अलग मिथि‍ला राज्य के आंदोलन को बढ़ावा दे रहा हूँ।

इतिहास गवाह है कि जीत हमेशा युवाओं की ही हुई है।

मिथिला के सर्वांगीण उन्नयन एवं अभ्युत्थान के लिए एक मात्र विकल्प मिथिला राज्य । हम चाहते हैं कि मिथिला एक अलग स्टेट बने, जिससे उसका विकास हो। सभी धर्म, अभी जाति और अभी जिले के लोग एक साथ आ चुके हैं। बाढ़ मिथि‍ला की सबसे बड़ी प्रॉब्लम है। आजादी से पहले ही ‘लोर्ड वेवेल’ ने इसके लिए खास प्रोजेक्ट तैयार किया था। कोसी के बाराह इलाके में हाई डैम बनाना था। इससे मिथिलांचल बाढ़ की तबाही से बचता।लेकिन आजादी के बाद बिहार सरकार ने बहाने बनाकर इस प्रोजेक्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया। अगर इन प्रोजेक्ट्स पर ढंग से काम हो और कोसी नदी पर हाइड्रो पॉवर प्लांट्स लगाएं जाएं तो इससे इतनी एनर्जी जेनरेट होगी कि बिहार और मिथिला ही नहीं पूरे भारत को जगमगाया जा सकता है। हम युवा हैं और इतिहास गवाह है कि जीत हमेशा युवाओं की ही हुई है।

यह लड़ाई मिथिला – मैथिली व मिथिलावाद व 7 करोड़ मैथिल की प्रतिनिधि संगठन “मिथिला स्टूडेंट यूनियन” लड़ेगी।

मिथिला राज्य के लिए निर्णायक लड़ाई लड़ने का समय आ गया है । यह लड़ाई मिथिला – मैथिली व मिथिलावाद व 7 करोड़ मैथिल की प्रतिनिधि संगठन “मिथिला स्टूडेंट यूनियन” लड़ेगी। भाषा, लिपि, क्षेत्र, जनसंख्या और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के मानक पर खरा उतरते हुए मिथिला पूर्ण राज्य बनने का अधिकार रखता है। मिथिला के सर्वांगीण विकास के लिए अलग स्वतंत्र राज्य का गठन जरूरी है। आर्थिक, शैक्षणिक एवं राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए पृथक मिथिला राज्य का गठन होना जरूरी है। मिथिला की गौरवशाली संस्कृति की पहचान को कायम रखने के लिए पृथक राज्य का गठन न सिर्फ प्रासंगिक है बल्कि यह सभी जरूरी मांगों को भी पूरा करता है।

मिथिला अपनी सभ्यता और संस्कृति के लिए चर्चित क्षेत्र रहा है

सांस्कृतिक संपन्नता के लिए दुनिया भर में विख्यात रहा मिथिला आज भी सरकारी उपेक्षा के कारण लगातार पिछड़ेपन का शिकार होने को मजबूर हो रहा है। इस कारण ना तो पलायन का कोई ठोस निदान अब तक निकल पाया है और ना ही संवैधानिक भाषा के रूप में अब तक मैथिली को यथोचित अधिकार ही प्राप्त हो सका है। मिथिला राज्य का निर्माण हो, जिससे मिथिला का ओद्योगिकरण और विकास संभव होगा।पौराणिक काल से ही मिथिला अपनी सभ्यता और संस्कृति के लिए चर्चित क्षेत्र रहा है। इस कार्यक्रम में शिवेंद्र वत्स, मनीष पांडेय, प्रसून मैथिल, अंकित झा, अमित झा, अभिराम जी, शिवेश आनंद समेत सैकड़ो लोग उपस्थित थे।

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