प्रेस विज्ञप्ति

आज दिनांक 23 मार्च को मिथिला स्टूडेंट यूनियन के दरभंगा कार्यालय पर शहीद दिवस मनाया गया। जिसमे मिथिलावादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा की 200 सालों की गुलामी के बाद भारत ने 1947 में अंग्रेजों से अपनी स्वतंत्रता प्राप्त की थी। लेकिन यह आजादी इतनी आसान थी। आजादी की कीमत के रूप में भारत को एक नहीं दो नहीं बल्कि लाखों कुर्बानियां देनी पड़ी थी। उन्होंने कहा की अगर भारत को विश्वगुरु बनाना है तो युवाओं को क्षेत्रवादी होना चाहिए।

वहीं, उदय नारायण झा ने कहा की भारत के इन महान सपूतों को ब्रिटिश हुकूमत ने लाहौर जेल में फांसी पर लटकाया था। इन स्वंतत्रता सेनानियों के बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। अंग्रेजों ने इन तीनों को तय तारीख से पहले ही फांसी दे दी थी। तीनों को 24 मार्च को फांसी दी जानी थी। मगर देश में जनाक्रोश को देखते हुए गुप्त तरीके से एक दिन पहले ही फांसी पर लटका दिया गया। पूरी फांसी की प्रक्रिया को गुप्त रखा गया था। उन्होंने कहा की आज के युग में समाज को भगत सिंह की जरूरत है, लेकिन उन्हें अपने घर में नही चाहिए।

एम एस यू के विश्वविद्यालय संगठन मंत्री दिवाकर मिश्रा ने कहा की 27 सितंबर 1907 को अविभाजित पंजाब के लायलपुर में जन्मे भगत सिंह बहुत छोटी उम्र से ही आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए और उनकी लोकप्रियता से भयभीत ब्रिटिश हुक्मरान ने 23 मार्च 1931 को 23वर्ष के भगत सिंह को फांसी पर लटका दिया। उनका अंतिम संस्कार सतलज नदी के तट पर किया गया था। 1928 में ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या करने के लिए उन्हें फांसी की सजा दी गई थी। इस कार्यक्रम के मौके पर अविनाश सहनी, विकाश मैथिल, मुरारी मिश्रा, संधीर यादव आदि उपस्थित थे।

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