यह टूरिस्ट प्लेस इन दरभंगा (Tourist Places In Darbhanga):दरभंगा उत्तर बिहार का एक प्रमुख जिला और कमिश्नरी (प्रमंडल) है। दरभंगा प्रमंडल के अंतर्गत तीन जिले दरभंगा, मधुबनी, एवं समस्तीपुर आते हैं। बिहार की राजधानी पटना से यह लगभग 140 किलोमीटर दूर है।
जिले की स्थापना 1875 में की गई थी। दरभंगा जिले की मुख्य नदी बागमती है। यह नदी दरभंगा जिले के बीच से बहती है। दरभंगा 16वीं सदी में स्थापित दरभंगा राज की राजधानी था। अपनी प्राचीन संस्कृति और बौद्धिक परंपरा के लिये यह शहर विख्यात रहा है।
दरभंगा जिले में आपको प्राचीन महल एवं किले के अवशेष देखने के लिए मिलते हैं। इस आलेख में हम आपको दरभंगा के कुछ अन्य महत्वपूर्ण दरभंगा में घूमने की जगह (Tourist places of Darbhanga) दर्शनीय स्थल के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं।
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टूरिस्ट प्लेस इन दरभंगा: बाबा कुशेश्वर नाथ महादेव मंदिर दरभंगा – Baba Kusheshwar Nath Mahadev Temple Darbhanga
कुशेश्वर महादेव मंदिर दरभंगा का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। यह मंदिर दरभंगा सहित पुरे मिथिला में प्रसिद्ध है। इसे मिथिला क्षेत्र का बैद्यनाथधाम (बाबा धाम) भी कहा जाता है.
यह मंदिर मस्तीपुर-खगडिया रेललाईन पर हसनपुर रोड से 22 किलोमीटर और दरभंगा से 60 किलोमीटर दूर, कोसी आ कमला बलान नदी के संगम स्थल पर कुशेश्वर स्थान ब्लॉक में स्थित है। मंदिर देखने में बहुत सुंदर है। मंदिर के अंदर शिवलिंग विराजमान है। यहां स्थापित शिवलिंग को लेकर दो तरह की कथा प्रसिद्ध है।

पहली कथा के अनुसार त्रेता युग में भगवान राम के पुत्र कुश के द्वारा इस शिवलिंग की स्थापना की गई। इसलिए इसका नाम कुशेश्वरस्थान पड़ा। दूसरी किवदंती के अनुसार यहां कुश का घना जंगल था। इसके साक्ष्य अभी भी यहां दिखाई पड़ते हैं। इ
स जंगल में आस पास के गांवों के चरवाहे गाय चराने आते थे। उन्हीं गायों में से एक बाछी प्रतिदिन एक निश्चित स्थान पर आकर अपना दूध गिराकर चली जाती थी। इसकी भनक गाय चराने के लिए आनेवाले चरवाहों को लगी।
खगा हजारी नामक एक चरवाहा जो संत प्रवृत्ति का था, उसने बाछी के द्वारा दिए जाने वाले दूध के स्थान पर खुदाई की तो शिवलिंग मिला। इसकी भनक जंगल में आग की तरह फैल गई। बाद में भगवान शिव ने खगा हजारी को स्वप्न दिया कि यहां मंदिर बना कर पूजा अर्चना शुरू करो।
टूरिस्ट प्लेस इन दरभंगा: रानी कलावती ने कराया था मंदिर का निर्माण (Tourist Places in Darbhanga)
बताया जाता है कि खगा हजारी ने उक्त स्थान पर फूस के मंदिर बनाकर पूजा अर्चना शुरू किया। 18 वीं शताब्दी में नरहन सकरपुरा ड्योढ़ी के रानी कलावती ने यहां भव्य मंदिर का निर्माण कराया। फिर 1970 के दशक में कलकत्ता के बिड़ला ट्रस्ट द्वारा मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया।
1990 के दशक में स्थानीय बाजार के नवयुवक संघ ने मंदिर के देखभाल शुरू की। वर्ष 2016 से न्यास समिति के अधीन मंदिर चलाद्वारा मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया.
नेपाल से भी पूजा अर्चना करने आते हैं लोग
मंदिर के पास में आपको एक तालाब देखने के लिए मिलता है। इस तालाब को शिव गंगा घाट के नाम से जाना जाता है। इस तालाब के चारों तरफ सीढ़ियां बनी हुई है और तालाब बहुत सुंदर है। यहां पर भक्त आकर डुबकी लगाते हैं और भगवान शिव के दर्शन करने के लिए जाते हैं।
वैसे तो यहां सालों भर पड़ोसी देश नेपाल सहित मिथिला (उत्तर बिहार) के सभी जिलों से लोग पूजा अर्चना करने के लिए आते हैं। पूरे सावन माह सहित अनंत चतुर्दशी, बसंत पंचमी एवं शिवरात्रि में पूजा अर्चना करने वालों की भारी भीड़ जुटती है। बाढ़ के समय यहां तक आने के लिए नाव का साधन उपलब्ध होता है।
नरगौना पैलेस, दरभंगा (Nargona Palace or Nargauna Palace, Darbhanga): कुमुद कहिन! (Tourist Places in Darbhanga) ब्लॉग पोस्ट से साभार
यह भारत का पहला भूकंपरोधि (First Earthquake Resistant Building of India) महल है। डच वास्तुशैली में बने इस महल को प्रसिद्ध वास्तुकार सह अभियंता फेलचर, हेय और रिड ने सामूहिक रूप से किया था।
महाराजा कामेश्वर सिंह ने इसका निर्माण 1934 में आये भूकंप के बाद क्षतिग्रस्त छत्र निवास पैलेस के स्थान पर कराया था। इस महल में एक भी ईंट का प्रयोग नहीं हुआ है। यह पूरा महल सीमेंट के मजबूत खंभों और दीवारों से बना है।
यह भारत का पहला महल है जो पूर्णत: वातानुकुलित था। यह देश का इकलौता पैलेस है, जिसके परिसर में रेलवे स्टेशन है। इस पैलेस की सबसे बडी खूबी इसका डिजाइन है, यह तितली जैसा है।
जिसके तहत यह दो दिशाओं से देखने में एक समान लगता है और हर कमरा सीधा सामने की ओर खुलता है। 1941 में तैयार हुए डज वास्तुशैली के इस 89 कमरोंवाले दो मंजिले पैलेस में कुल 14 महाराजा सूट है, जो विभिन्न राज्यों के स्थापत्य शैली से सुसज्जित है।
इन सूइट में एक नेपाल के राजा का भी है, जिसमें नेपाल नरेश त्रिभुवन रात गुजार चुके हैं। कहा जाता है कि नेपाल नरेश देश की सीमा के बाहर रात नहीं गुजारा करते थे। पहली बार नेपाल के किसी राजा ने राज्य की सीमा के बाहर इसी महल में रात गुजारी थी।
इससे पहले नेपाल के राजा रात अपनी सीमा में ही गुजारते थे। वैसे बीकानेर केे महाराजा गंगा सिंह इस महल में ठहरनेवाले पहले राज अतिथि थे। वो 1939 में दरभंगा प्रवास के दौरान इसी महल में ठहरे थे।
भारत के राष्ट्रपति को निजी तौर पर ठहराने का सौभाग्य भी केवल इसी पैलेस को मिला हुआ है
दो लिफ्ट की सुविधावाले इस महल में पहली बार प्लास्टर आफ पेरिस का प्रयोग हुआ था। इटेलियन मारवल, चीनी मोहबनी (टीक) और बेलजियम ग्लास से बने इस महल को बिहार का व्हाईट हाउस भी कहा जा सकता है। कई प्रकार के कमरोंवाले इस महल में उत्तर भारत का इकलौता बॉल डांस हॉल है, जिसमें आवाज की गूंज राष्ट्रपति भवन के अशोक हॉल से भी कम है।
इस महल में दो तरणताल हैं, जिनमें से एक गरम पानी वाला तरणताल पैलेस के अंदर है और वह बिहार का पहला तरणताल है। इस तरणताल में जयपुर के महाराजा सवाई मान सिंह और नेपाल के राजा त्रिभुवन समेत कई एतिहासिक हस्तियों के स्नान करने की बात कही जाती है। लांग टेनिस, बैडमिंटन से लेकर कई प्रकार के खेलों के लिए परिसर में आधारभूत संरचना बनायी गयी हैं।
इसके अलावा एक जैविक उद्यान भी, जिसको दुनिया के प्रसिद्ध बागवान चाल्स मैरीज की देख रेख में छत्र विलास पैलेस के दौरान ही विकसित किया था। इसमें करीब 40 हजार पेड लगे थे। चंदन समेत कुछ ऐसी प्रजातियों के पेड भी यहां लगोय गये, जो बिहार ही नहीं अपितु एशिया में केवल यहीं थे।
इन पेडों को लगाने के लिए न केवल बाहर से पौधे मंगाये गये बल्कि बाहर से माटी भी मंगायी गयी। इस महल के पास एक और रिकार्ड है, वो यह है कि भारत के राष्ट्रपति राज्य के अतिथि होते हैं।
लेकिन आजादी से लेकर अब तक केवल एक बार राष्ट्रपति किसी के निजी मेहमान बने है। वो राष्ट्रपति थे राजेंद्र प्रसाद। भारत के राष्ट्रपति को निजी तौर पर ठहराने का सौभाग्य भी केवल इसी पैलेस को मिला हुआ है।

इस महल को 1975 में बिहार सरकार ने एक गलत काम के लिए खरीद लिया
यह महल एक जमींदार ने जरूर बनाया था, लेकिन इसमें संविधानसभा के सदस्य, राज्यसभा में बिहार के प्रतिनिधि और बिहार के सबसे बडे उद्योगपति डॉ कामेश्वर सिंह रहते थे। यह महल निश्चित रूप से देश के अन्य महत्वपूर्ण महलों की तरह आम जनता के लिए उपलब्ध होना चाहिए था।
इस आधारभूत संरचना का लाभ दरभंगा में पर्यटकों को लुभाने के लिए भी किया जा सकता था, लेकिन इस महल को 1975 में बिहार सरकार ने एक गलत काम के लिए खरीद लिया। संप्रति यह ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के अधीन है। आइये हम हैदराबाद चल कर फलकनुमा पैलेस देखें।
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